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कितनी आवाज़ें महकी हैं


हाथ छोड़ा है क्यों, प्रेम जब है किया?
मेरी आँखों को सुंदर-सा सपना दिया
मोड़ मुख अपना मुझसे हुए दूर हो,
मेरी यादों का तुम ही तो कोहिनूर हो!
              खुशनुमा सी बहारें मचलने लगीं
              भीगती बारिशों में, मैं फिसलने लगीं।।



दिन की दोपहर भी, सूनी है बिन तेरे
ये बहस कौन सी, जिस में हम हैं जिये?
कितनी आवाज़ें महकी हैं, मेरी-तेरी
दूर आंखों से है, नींद भी अब मेरी।
                 हारी हूँ मैं, बाज़ियाँ सभी जीत कर
                 चाहती हूँ तू, मुझीको प्यार कर।।



फूल अगणित खिले हैं, चमन में मेरे
तेरी ख़ुशबू की चाहत, मगर बेचैन करे…
पहला अहसास तेरा, मुझे याद है!
मुझको मत कर पराया, यही फ़रियाद है
                  आज भी खलती है मुझको, तेरी ही कमी
                  खींचा करते थे चुटिया, मेरी जब भी कभी।।



कहाँ खो गयी - वो सभी मस्तियाँ?
गिट्टे खेले थे, कूदी बहुत सी रस्सियां…
एक अनजान से, रिश्ता बंधा
शादी हुई, एक नाता संधा।
               चाहती थी मैं कि, तुम ही साथी बनो
               विधि ने कुछ और ही, लिखा था, सुनो।।



मांग सिंदूरी है, पर मुझे सूनी लगे
हाथ की चूड़ियां भी, अधूरी लगें…
चद्दरों की सिलवटें, आज भी तुम्हारा नाम लें
जैसे गुमशुदा प्यार तेरा, आज भी मुझे वहीँ थाम लें
              कजरा नयनों का मेरा, अब फीका हुआ!
              बिन तेरे जीना है, बहुत मुश्किल हुआ।।



तुम अभी तक हो, मेरे, रहोगे सदा!
प्यार दिल में है, तुम्हारा ही, मेरे बसा।
मैं अभागन, सदा जैसे प्यासी रही
आंसुओं की नदी, इन नयनों में बही।
            मैं विरहन बनी, जोगन बनी…
            आ भी जाओ, सनम, कि आँसुओं से है ठनी।।

 

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~ श्रीधरी देसाई 

© Sreedhari Desai

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