top of page

निशब्द

 

मैं काँच-सी धीमे-धीमे किरचों में उतर गई,
और शोर भी नहीं हुआ।


मैं तप कर राख हो गई,
पर कोई उजाला न फूटा।


मैं भीतर की ख़ामोशी में घुलती रही,
और अर्थ का एक कण भी नहीं खुला।


मैं बर्फ-सी जमती रही,
और ज़रा-सा स्पर्श भी नहीं हुआ।


मैं गुमनामी की तह-दर-तह दबती गई,
सो मैंने इसी सन्नाटे को आसरा माना।

**********************************
~ श्रीधरी देसाई 

© Sreedhari Desai

Echoes of the heart 7x11 Oil on Stretched canvas.jpg

© 2023 by Sreedhari Desai.

bottom of page