top of page

काहे को कलैय्या छोड़ी रे?


कर प्रेम, तू काहे को, कलैय्या छोड़ी रे?

थे मारा मैं थारी, प्रीत काहे तोड़ी रे? (2)

 

हारी मैं हारी, सब पाके भी, खाली प्रेम गगरिया

फूलों के आँगन में डस्ती, मोहे रोज़ बिच्छुरिया (2)

 

साजन रे, काहे को, हुआ निर्मोही रे?

कर प्रेम…

 

तेरे नाम की मांग सजाई , होई प्रेम दीवानी
आंगन में किलकारी खेले, दी जो प्रेम निशानी (2)


इस प्रेम रत्न की तो, सुनो अरजाइ रे
कर प्रेम…

 

दिल ने बस तुमको ही चाहा, तुमसे प्रीत लगाई
किस्मत में अपने, सजनी, थी लिखी सिर्फ जुदाई ... (2)


मजबूर हूँ सजनी मैं, नहीं निर्मोही रे
मैं दुनिया छोड़ चला, प्रीत नहीं तोड़ी रे

 

कर प्रेम, तू काहे को, कलैय्या छोड़ी रे?

थे मारा मैं थारी, प्रीत काहे तोड़ी रे? (2)

 

**********************************
~ श्रीधरी देसाई 

© Sreedhari Desai

© 2023 by Sreedhari Desai.

bottom of page