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सम्पूर्ण, साधारण प्रेम
कभी बासी उबासी लेते हुए
कभी पुराने, पसीने से तर
कपड़ों में कड़छा चलाते हुए
कभी ग्राहक सेवा प्रतिनिधि से
थक कर बातें करते हुए
और कभी बिजली के टूटे तारों को
टेप से जोड़ते हुए
कभी अपनी सूजी हुई एड़ियों को
हमारे नन्हे से मेज़ पर टिकाए हुए
फिर कभी अपने टेढ़े मेढ़े नाखून
दांतों से चबाते हुए
मुझे देख, इशारा करती है जब मेरी प्रेयसी,
दुनिया की सबसे कीमती वस्तु
से भी अतिप्रिय हो जाता है
हमारा सम्पूर्ण, साधारण प्रेम
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~ श्रीधरी देसाई
© Sreedhari Desai

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